Sketchstory No. 2 - 'परचम/Parcham' by Monika Sekhri
खुद पे गुरुर है जो मेरा
कभी टूटा और कभी बिखरा भी
टुकड़े उठाये, जोड़े और
मैं फिर बड़ चली
मेरी मुस्कराहट पे तो जा
बड़ी मुश्किल से पायी है
दर्द मिले कई जो ज़िन्दगी से
उनपे जीत की परचम लहराई है।
The pride I bore
was broken and shattered
I picked up my pieces,
moved on, undeterred
Heed my smile
I gathered with labour
The flag of a conqueror
who won ache over.
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