Sketchstory No. 30 - 'Khayal' by Prabal Vikram Singh



[Note : This is not a typical story. I was told the sketch demanded just songs :)]


चांदनी, नैना, सिमरन, पूजा, काजल, तुम जो कोई भी हो। तुम्हे देख कर मन में कुछ इस तरह के भाव आतें हैं,


'ये हवाएं ज़ुल्फ़ों में तेरी गुम हो जाये 
ये हवाएं ज़ुल्फ़ों में तेरी गुम हो जाये 
हो चूमें निगाहों से चेहरा तेरा..... 
होंठों से छू ले फिर दामन तेरा 
अपनी पनाहों में तुझको भरे 
मेरी आरज़ू को परेशाँ करे ....
                                                       (बस इतना सा ख्वाब है, 2001)
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'देखा एक ख़्वाब तो ये सिलसिले हुए
दूर तक निगाहों में हैं गुल खिले हुए
ये ग़िला है आप की निगाहों में
फूल भी हों दर्मियां तो फ़ासले हुए
देखा एक ...'
                                          (सिलसिला, 1981)
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'आँखों ही आँखों में इशारा हो गया
बैठे-बैठे जीने का सहारा हो गया

गाते हो गीत क्यूँ, दिल पे क्यूँ हाथ है
खोए हो किस लिये, ऐसी क्या बात है
ये हाल कब से तुम्हारा हो गया
आँखों ही आँखों में इशारा...'
                                             (C.I.D, 1956)
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'नज़राना भेजा किसी ने प्यार का
है दीवाना जो बस तेरे दीदार का
नज़राना भेजा किसी ने प्यार का
है दीवाना जो बस तेरे दीदार का'
                                                 (देस परदेस, 1978)
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'रंग भरे बादल से
तेरे नैनो के काजल से
मैने इस दिल पे
लिख दिया तेरा नाम
चाँदनी ओ मेरी चाँदनी'
                                          (चाँदनी, 1989)
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